इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेंद्र में फिल्म व कॉफी टेबल बुक का लाकार्पण
जम्मू कश्मीर के वास्तविक इतिहास को जानें और समझें-डॉ सच्चिदानंदस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 19 December 2025 12:48:29 PM
नई दिल्ली। भारत का अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध एक क्षेत्र मात्र नहीं है, बल्कि प्राचीनकाल से ही यह देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक चेतना का महत्वपूर्ण केंद्र है। इसी मूलभाव को रेखांकित करते हुए ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ शीर्षक से एक महत्वपूर्ण फिल्म और कॉफी टेबल बुक का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में किया गया। लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन आईजीएनसीए के मीडिया केंद्र ने किया था। फिल्म का निर्माण आईजीएनसीए ने किया है। फिल्म के लेखक एवं सहनिर्माता राजन खन्ना हैं, जबकि इसके निर्देशक और संपादक शिवांश खन्ना हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक एवं प्रसारक गौरीशंकर रैना, फिल्म के लेखक राजन खन्ना तथा मीडिया केंद्र के नियंत्रक अनुराग पुनेठा भी उपस्थित थे। ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ विषय पर एक पैनल चर्चा भी हुई, जिसमें डॉ सच्चिदानंद जोशी, राजन खन्ना और गौरीशंकर रैना ने अपने विचार साझा किए।
डॉ सच्चिदानंद जोशी ने उल्लेख कियाकि ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ फिल्म में दिखाए गए कई स्थानों पर शूटिंग करना आसान नहीं था, क्योंकि ये क्षेत्र न सिर्फ भौगोलिक रूपसे दुर्गम इलाके हैं, बल्कि हालके दिनों में वहां पहुंचना भी बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहाकि इनमें से कई स्थानों की तस्वीरें बहुत कम देखने को मिलती हैं, फिल्म में दुर्लभ स्थलों पर किए गए शूट के दृश्य हैं। फिल्म के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहाकि इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और खत्म करने तथा हमारी परंपरागत आस्थाओं को मिटाने के निरंतर प्रयासों केबीच यह फिल्म एक प्रकाशस्तंभ की तरह खड़ी होगी। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि यह बताएगीकि हमारी परंपराएं क्या हैं और हमारा इतिहास क्या है? इस फिल्म के जरिए वे युवा, जो जम्मू कश्मीर के वास्तविक इतिहास को नहीं जानते हैं, लेकिन उसे जानना-समझना चाहते हैं, निश्चित रूपसे जुड़ सकते हैं। फिल्म के निर्देशक शिवांश खन्ना ने इस दौरान महत्वपूर्ण मंदिरों के कुछ प्रभावशाली शॉट्स और दृश्य रील्स के रूपमें प्रसारित किए और कहाकि इससे लोगों की रुचि पूरी फिल्म देखने और इसके व्यापक प्रचार में सहायता मिलेगी।
फिल्म के लेखक राजन खन्ना ने कहाकि जिस प्रकार शरीर और आत्मा का संबंध होता है, उसी प्रकार राष्ट्र, संस्कृति और भूगोल का भी संबंध होता है। राजन खन्ना ने कहाकि शरीर नश्वर है, लेकिन राष्ट्र और संस्कृति शाश्वत हैं। उन्होंने कहाकि भारत फूलों के एक गुलदस्ते की तरह है और उसमें जम्मू कश्मीर की संस्कृति एक विशिष्ट पुष्प के समान है, जिसमें अध्यात्म, इतिहास और चिंतन समाहित है। उन्होंने कहाकि जब कोई इस क्षेत्रकी यात्रा करता है तो वह सिर्फ मंदिरों के दर्शनभर नहीं करता, बल्कि भारतीय संस्कृति की नींव बनाने वाले वेदों, भजन और उनकी संपूर्ण दार्शनिक परंपरा का अनुभव करता है। राजन खन्ना ने कहाकि हमारे पूर्वजों की महान संस्कृति की झलक जम्मू कश्मीर में साफ दिखाई देती है। उन्होंने कहाकि कश्मीर का नाम आते ही प्रायः चर्चा आतंकवाद, जिहाद या लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन जब कश्मीर पर बात होती है तो इसके 10000 वर्ष पुराने इतिहास का उल्लेख क्यों नहीं होता?
राजन खन्ना ने कहाकि विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक माने जानेवाले अनंतनाग पर चर्चा क्यों नहीं होती? उन्होंने कहाकि कश्मीर का इतिहास सिर्फ 1339 से 1819 की अवधि तकही क्यों सीमित कर दिया गया है? कश्मीर का इतिहास ऋग्वेद से भी जुड़ा हुआ है। राजन खन्ना ने कहाकि यदि हम स्वयं अपनी सभ्यतागत नींव को पुनः स्थापित नहीं करेंगे तो हम किसे दोष देंगे? भविष्य भी हमें माफ नहीं करेगा। गौरीशंकर रैना ने कहाकि इस प्रकार की फिल्म बनाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है, उन्होंने स्वयं इस प्रक्रिया से गुजरते हुए अनुभव किया हैकि विशेष रूपसे मंदिरों पर फिल्म बनाना कितना कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए अनेक अनुमतियों की आवश्यकता होती है और कईबार ऐसे स्थानों तक पहुंचना पड़ता है, जहां जाना काफी मुश्किल होता है। गौरीशंकर रैना ने कहाकि इसमें अनेक प्रकार की कठिनाइयां आती हैं। उन्होंने कहाकि ऐसी फिल्मों से जुड़ा शोधकार्य भी बहुत ज़्यादा समय लेने वाला और परिश्रमपूर्ण होता है। उन्होंने कहाकि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का युग है और ऐसे समय में फिल्म एक अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है, जिसके जरिए सार्थक कहानियों को आमजन तक पहुंचाया जा सकता है।
अनुराग पुनेठा ने कहाकि जबभी कोई फिल्म ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से किसी विषय का दस्तावेजीकरण करती है तो वह एक अत्यंत महत्वपूर्ण काम करती है। अनुराग पुनेठा ने कहाकि ऐसे समय में जब पिछले तीन चार दशक से कश्मीर को मुख्यतः एक संघर्ष क्षेत्रके रूपमें दिखाया गया है, तब फिल्म के माध्यम से देश को यह बताना बहुत आवश्यक हैकि जम्मू कश्मीर की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, जो आजभी जीवित है, वहां की वास्तुकला हमारी सामूहिक स्मृति का अभिन्न अंग है। अनुराग पुनेठा ने कहाकि जो समाज अपनी विरासत को भूलकर बाकी सबकुछ याद रखता है, वह गंभीर संकट का सामना करता है और यह फिल्म उस स्मृति को फिरसे सबके सामने वापस लाने का एक छोटासा प्रयास है। कार्यक्रम का संचालन मीडिया केंद्र के नरेंद्र सिंह ने किया। फिल्म ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ जम्मू कश्मीर के मनोहारी नजारों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसकी शुरुआत क्षेत्रकी प्राचीन आध्यात्मिक चेतना के शांत और गहन स्मरण से होती है, एक ऐसी भूमि जिसे इतिहासकार कल्हण ने अपनी ‘राजतरंगिणी’ में असंख्य मंदिरों से सुसज्जित बताया है। आजभी इनमें से कुछ मंदिर अपनी गरिमामय उपस्थिति केसाथ खड़े हैं, जबकि कई अन्य खंडहरों के रूपमें समय और ऐतिहासिक उथल-पुथल के मूक साक्षी बने हुए हैं।
‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ फिल्म सशक्त और जीवंत दृश्यों से सिख और डोगरा शासकों द्वारा मंदिरों और धार्मिक स्थलों के पुनरुद्धार के प्रयासों को सामने लाती है। यह श्रीनगर के हरवन मठ में चतुर्थ बौद्ध संगीति (परिषद) की दार्शनिक और बौद्धिक विरासत केसाथ-साथ गुरु हरगोबिंद के आगमन से जुड़ी सिख परंपरा को भी रेखांकित करती है। फिल्म जम्मू कश्मीर क्षेत्रकी उन कम ज्ञात आध्यात्मिक परंपराओं पर भी प्रकाश डालती है, जिन्हें ज्यादातर नज़रअंदाज किया गया है, पहलगाम के प्राचीन ममलेश्वर मंदिर से लेकर गुलमर्ग के आसपास के भूले हुए तीर्थस्थलों और जम्मू के ऐतिहासिक मंदिरों तक का उल्लेख किया गया है। ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ फिल्म एक सिनेमाई पुनःखोज के रूपमें उभरती है, जो दर्शकों को एक लंबे समय से दबाई गई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कहानी से फिरसे जुड़ने केलिए आमंत्रित करती है। यह फिल्म दर्शकों को उस भूमि से परिचित कराती है, जहां हर पत्थर अपने भीतर यादों, भक्ति और सांस्कृतिक निरंतरता का भार समेटे हुए है।