सड़क मार्ग से यात्रा की दूरी कम से कम 44 किलोमीटर कम हुई
सीमापार व्यापार, क्षेत्रीय वाणिज्य और बहुप्रतीक्षित निवेश सुगमस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 19 December 2025 06:09:33 PM
पटना। बिहार में कोसी नदी के तट पर जहां दशकों से लोग बाढ़, अलगाव और लंबे चक्करों से जूझते आ रहे हैं, उनका करीब 13.3 किलोमीटर लंबा सुगम मार्ग का सपना अब साकार हो रहा है, उसपर भेजा-बकौर कोसी पुल का निर्माण अंतिम चरण में है। कोसी नदी पर बना यह पुल एकबार चालू होने केबाद यात्रा की दूरी को 44 किलोमीटर कम कर देगा। यह बाढ़ प्रभावित, सुविधाओं से वंचित मधुबनी और सुपौल क्षेत्रों को सीधे एनएच-27 और पटना से जोड़ देगा। इससे नेपाल और पूर्वोत्तर केलिए भी सुगम मार्ग खुलेंगे। इससे सीमापार व्यापार, क्षेत्रीय वाणिज्य और बहुप्रतीक्षित निवेश को बढ़ावा मिलेगा। यह विकास बिहार में भारतमाला परियोजना के प्रथम चरण की बस रैपिड ट्रांजिट योजना के अंतर्गत ईपीसी मोड पर हो रहा है। बिहार में 1101.99 करोड़ रूपये के निवेश से निर्मित यह पुल क्षेत्रमें कनेक्टिविटी को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परियोजना के वित्तीय वर्ष 2026-2027 में पूरा होने का लक्ष्य है।
भेजा-बकौर कोसी पुल मार्ग बनने से तीर्थयात्रियों को भगवती उच्चैत, बिदेश्वर धाम, उग्रतारा मंदिर और सिंहेश्वर स्थान जैसे पवित्र स्थलों तक आसानी से पहुंच मिलेगी। किसानों को बाढ़ के दौरान फंसे रहने का डर नहीं रहेगा। छात्र बिना किसी डर के स्कूल पहुंच सकेंगे। व्यापारी समय पर सामान पहुंचा सकेंगे। छोटी दुकानें बढ़ेंगी, परिवहन सेवाएं बेहतर होंगी, स्थानीय युवाओं को नए रोज़गार मिलेंगे। एक समय उग्र नदी से संघर्षों केलिए मशहूर इस क्षेत्रमें यह पुल संभावनाओं को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है और जैसेही कोसी पुल निर्माण के अंतिम चरण के नजदीक आ रहा है, उत्तरी बिहार के लोग एकही भावना से एकजुट हो जाते हैं, उनकी दुनिया हमेशा केलिए बदलने वाली है। यह पुल मधुबनी, सुपौल, सहरसा और आसपास के जिलों केलिए मात्र इस्पात और कंक्रीट से कहीं अधिक है।
भेजा-बकौर कोसी पुल एक जीवनरेखा है, आशा की एक अटूट कड़ी है, जो कोसी नदी के बाढ़ के मैदानों की चुनौतियों से प्रभावित समुदायों केलिए जीवन को सुगम बनाती है। सहरसा के रहने वाले शिक्षक रोशन कुमार, जो मधुबनी के एक प्लस-टू स्कूल में रोज़ाना पढ़ाने जाते हैं, उनके लिए यह पुल वर्षों की थका देने वाली यात्राओं से मुक्ति का प्रतीक है। वे बताते हैंकि अभी भेजा पहुंचने केलिए उन्हें बलवाहा पुल और कोसी तटबंध से होते हुए लगभग 70 किलोमीटर अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ती है। पहले दरभंगा या फुलपरास होकर जाना पड़ता था, जो 150 से 200 किलोमीटर का सफर होता था। पुल चालू होने बाद सहरसा से मधुबनी की दूरी लगभग 70 किलोमीटर कम हो जाएगी। यह बदलाव जीवन बदल देने वाला है। उनकी आवाज़ में नरमी आ जाती है, जब वे आगे कहते हैंकि यह सिर्फ एक पुल नहीं है, इससे शिक्षकों, छात्रों, व्यापारियों, सभी केलिए समय, पैसा और ऊर्जा की बचत होगी। क्षेत्रमें एक मेडिकल शॉप के मालिक पंकज केलिए इस परियोजना का भावनात्मक महत्व और भी गहरा है।
वे कहते हैंकि हमने बहुत कष्ट झेला है, मरीजों को अस्पतालों तक ले जाना एक बुरे सपने जैसा था, बाढ़ के कारण हमारा संपर्क टूट जाता था, नौकाएं बंद हो जाती थीं और कईबार मदद देर से पहुंचने के कारण लोगों की जान चली जाती थी, अब एम्बुलेंस आधे घंटे में पुल पारकर जाएगी, मरीज समय पर पहुंचेंगे, यह सम्मान की बात है, यह सुरक्षा की बात है। वे कहते हैंकि उन्हें गर्व हैकि उनके जिले में ऐसा पुल बन रहा है। क्षेत्र के युवाओं में भी यही उत्साह है। ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा नेहा बताती हैकि मानसून के दौरान इलाके को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी थी, लोग पार करने से डरते थे, सड़कें बह जाती थीं, लेकिन अब सबकुछ बदल जाएगा, हम सुरक्षित स्कूल पहुंचेंगे, हमारा इलाका आखिरकार राज्य के बाकी हिस्सों से जुड़ पाएगा। इस पुल का परिवर्तनकारी प्रभाव इन व्यक्तिगत अनुभवों से कहीं अधिक व्यापक है।