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उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका पर तीखे सवाल उठाए

'कीड़ों और कंकालों को सार्वजनिक डोमेन में लाने का समय आ गया'

'राष्ट्रपति को निर्देश कैसे? व जज पर एफआईआर क्यों नहीं हुई?'

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Friday 18 April 2025 06:34:25 PM

vice president jagdeep dhankhar

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका में घटीं हालही की घटनाओं का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट से प्रश्न किया हैकि 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में जिस जज के घर पर कैश मिलने जलने की घटना घटी है, उसमें अभीतक एफआईआर क्यों नहीं हुई है, यही नहीं सात दिन तक भी किसीको इस घटना के बारेमें पता नहीं चला। उन्होंने कहाकि हमें खुदसे सवाल पूछने होंगे, क्या देरी की वजह समझ में आती है? क्या यह माफ़ी योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? जगदीप धनखड़ ने कहाकि देश के राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट या कोई भी कोर्ट कैसे निर्देश दे सकता है, क्योंकि राष्ट्रपति से बढ़कर देश की कोई भी संस्था नहीं है और उन्हें कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता। जगदीप धनखड़ राज्यसभा के छठे प्रशिक्षु उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
सभापति जगदीप धनखड़ ने उल्लेख कियाकि 21 मार्च को एक अख़बार ने जज के यहां कैश मिलने का खुलासा किया था, जिसे जानकर देश के लोग हैरान थे, इसके बाद सार्वजनिक डोमेन में हमारे पास एक आधिकारिक स्रोत से इनपुट था, भारत का सर्वोच्च न्यायालय और इनपुट ने दोषी होने का संकेत दिया। इनपुट से यह संदेह नहीं हुआकि कुछ गड़बड़ है, कुछ ऐसा है, जिसकी जांच की जानी चाहिए? अब देश बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है। उन्होंने कहाकि राष्ट्र बेचैन है, क्योंकि हमारी एक संस्था, जिसे लोग हमेशा सर्वोच्च सम्मान और आदर केसाथ देखते आए हैं, को कटघरे में खड़ा किया गया है। उन्होंने कहाकि अब एक महीने से ज़्यादा हो गया है, भले ही यह कीड़ों का डिब्बा हो, भले ही अलमारी में कंकाल हो, डिब्बे को उड़ाने का समय आ गया है, इसका ढक्कन हटाने का समय आ गया है और अलमारी को ढहाने का समय आ गया है, कीड़ों और कंकालों को सार्वजनिक डोमेन में आने दें ताकि सफ़ाई हो सके।
जगदीप धनखड़ ने कहाकि मैं एक पल केलिए भी यह नहीं कहूंगा कि हमें निर्दोषता को महत्व नहीं देना चाहिए, जबतक हम निर्दोषता में विश्वास करते हैं, तबतक लोकतंत्र का पोषण होता है, इसके मूल मूल्य विकसित होते हैं और मानवाधिकारों को उच्च स्थान दिया जाता है, इसलिए मुझे किसी व्यक्ति पर संदेह करने के रूपमें गलत नहीं समझा जाना चाहिए, लेकिन फिर एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में इसकी आपराधिक न्याय प्रणाली की शुद्धता इसकी दिशा निर्धारित करती है। उन्होंने कहाकि जज के यहां पैसा मिलने की जांच की आवश्यकता है, जबकि कानून के तहत कोई जांच नहीं चल रही है। उन्होंने कहाकि आपराधिक जांच केलिए एफआईआर की शुरुआत की जानी चाहिए, जबकि ऐसा नहीं हुआ है, यह देश का कानून हैकि प्रत्येक संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट पुलिस को दी जानी चाहिए और ऐसा न करना, संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट न करना अपराध है। उपराष्ट्रपति ने प्रशिक्षुओं से कहाकि आप सभी सोच रहे होंगेकि कोई एफआईआर क्यों नहीं हुई, इसका उत्तर सरल है। उन्होंने कहाकि इस देश में किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है, किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ, यहांतक कि आपके सामने मौजूद व्यक्ति के खिलाफ भी, आपको बस कानून के शासन को सक्रिय करना है, इसके लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर मामला न्यायाधीशों का है तो एफआईआर सीधे दर्ज नहीं की जा सकती, इसके लिए न्यायपालिका में संबंधित व्यक्ति से मंजूरी लेनी होती है, जबकि संविधान में ऐसा नहीं है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रश्न कियाकि भारत के संविधान ने केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही अभियोजन से छूट दी है तो फिर कानून से परे एक वर्ग को यह छूट कैसे मिली है? क्योंकि इसके दुष्परिणाम सभी के मन में महसूस किए जा रहे हैं। उन्होंने कहाकि इससे हर भारतीय चाहे वह युवा हो या बूढ़ा, बहुत चिंतित है तो क्या हम ऐसे हालातों में चले गए हैंकि समय केसाथ यह बात चली जाएगी? उन्होंने कहाकि लोगों के दिल पर इस घटना से गहरी चोट लगी है, लोगों का विश्वास डगमगा गया है। उन्होंने कहाकि कैश मामले की जांच तीन जजों की समिति कर रही है, जबकि जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है, जांच न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है, सवाल हैकि क्या जांच समिति भारत के संविधान के अधीन है? नहीं। क्या तीन जजों की इस समिति को संसद से पारित किसी कानून के तहत कोई मंजूरी मिली हुई है? नहीं। समिति अधिक से अधिक सिफारिश कर सकती है, हमारे पास जजों केलिए जिस तरह का तंत्र है, उसमें संसद ही एकमात्र कार्रवाई कर सकती है। उन्होंने कहाकि एक महीना बीत चुका है, जांच केलिए तेजी, शीघ्रता और अपराध साबित करने वाली सामग्री को सुरक्षित रखने की जरूरत होती है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि देश के नागरिक और पद पर होने के नाते मैं चिंतित हूं, क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे हैं? क्या हम 'हम लोगों' के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, जिन्होंने हमें संविधान दिया है? उन्होंने कहाकि मैं सभी संबंधित पक्षों से दृढ़ता से आग्रह करूंगा कि वे इसे एक परीक्षण मामले के रूपमें देखें, इस समिति के पास क्या वैधता और अधिकार क्षेत्र है? क्या हम एक वर्ग द्वारा बनाए गए अलग-अलग कानून और उस वर्ग द्वारा बनाए गए कानून को संविधान की बजाय संसद की बजाय अलग-अलग बना सकते हैं? उन्होंने कहाकि मेरे हिसाब से इस समिति की रिपोर्ट में कानूनी आधार का अभाव है। उन्होंने कहाकि हाल ही में एक मीडिया हाउस द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से पता चलता हैकि न्यायपालिका पर जनता का विश्वास कम हो रहा है। उन्होंने कहाकि लोकतंत्र की सफलता केलिए यह आवश्यक है कि तीन मूलभूत स्तंभ-विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका बोर्ड से ऊपर हों, वे पारदर्शी और जवाबदेह हों, क्योंकि वे बड़े पैमाने पर लोगों के सामने अनुकरणीय उच्चतम मानकों का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, यह हमारे लोकतंत्र केलिए मौलिक हैं, यह हमारे लोकतंत्र का अमृत हैं, हमारे लिए इसे लागू करने का समय आ गया है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि हमारे संविधान निर्माता बहुत बुद्धिमान लोग थे, जो राष्ट्रीय कल्याण में गहरी आस्था रखते थे, उन्होंने तीन साल से भी कम समय में 18 सत्रों तक बहस की, कोई टकराव नहीं हुआ, कोई व्यवधान नहीं हुआ, संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श हुआ, उन्होंने एक नियम बनाया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति अनुच्छेद 124 के तहत की जाएगी और इसमें परामर्श शब्द का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहाकि परामर्श सहमति नहीं है, परामर्श, परामर्श है। उन्होंने कहाकि अनुच्छेद 124 बहुत विशिष्ट था और इसके संबंध में हमारे पास डॉ बीआर अंबेडकर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रवचन है, जिसे मैं उद्धृत करता हूं-‘मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीश की नियुक्ति पर व्यावहारिक रूपसे वीटो की अनुमति देना वास्तव में मुख्य न्यायाधीश को वह अधिकार हस्तांतरित करना है, जिसे हम राष्ट्रपति या तत्कालीन सरकार में निहित करने केलिए तैयार नहीं हैं, इसलिए मुझे लगता हैकि यह भी एक खतरनाक प्रस्ताव है।’ लेकिन 1993 में दूसरे न्यायाधीश के मामले में अदालत ने परामर्श की व्याख्या सहमति के रूपमें की। दोनों शब्द अलग-अलग हैं। उन्होंने कहाकि पीठ ने यह नहीं देखाकि भारतीय संविधान में परामर्श और सहमति इन शब्दों का इस्तेमाल एक ही अनुच्छेद में किया गया है, तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अनुच्छेद 370 में दोनों ही अभिव्यक्तियां एक ही उप अनुच्छेद में हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रश्न कियाकि संविधान में संविधान सभा के सदस्यों द्वारा अलग-अलग इस्तेमाल किए गए इन दो शब्दों को अलग-अलग कैसे पढ़ा जा सकता है? अब स्थिति सभी का ध्यान आकर्षित कर रही है और इस देश के नागरिकों के रूपमें यह हमारा दायित्व हैकि हम इस बारे में सोचें कि चीजों को कैसे विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहाकि संसद न्यायालय के निर्णय की पटकथा नहीं लिख सकती, संसद केवल कानून बना सकती है और न्यायपालिका तथा कार्यपालिका सहित संस्थाओं को जवाबदेह ठहरा सकती है। उन्होंने कहाकि निर्णय लिखना, निर्णय लेना, न्यायपालिका का उतना ही एकमात्र विशेषाधिकार है, जितना कि कानून बनाना संसद का अधिकार है, लेकिन अक्सर हम देख रहे हैंकि कार्यकारी शासन न्यायिक आदेशों द्वारा होता है, जब सरकार लोगों द्वारा चुनी जाती है, तो वह संसद के प्रति जवाबदेह होती है, सरकार चुनाव में लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। उन्होंने कहाकि जवाबदेही का एक सिद्धांत लागू होता है, आप संसद में प्रश्न पूछ सकते हैं, क्योंकि शासन कार्यपालिका द्वारा होता है, लेकिन अगर यह कार्यकारी शासन न्यायपालिका द्वारा होता है, तो आप प्रश्न कैसे पूछेंगे? आप चुनावों में किसे जवाबदेह ठहराएंगे?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि हमारे तीनों संस्थान-विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के खिलने का समय आ गया है और वे तब सबसे अच्छे से खिलते हैं जब वे अपने क्षेत्र में काम करते हैं। उन्होंने कहाकि किसी एक के द्वारा दूसरे के क्षेत्र में कोई भी अतिक्रमण चुनौती पेश करता है, जो अच्छा नहीं है, यह संतुलन को बिगाड़ सकता है, इन तीनों केबीच संबंध स्वस्थ, सुखदायक, गहरी समझ और समन्वय वाला होना चाहिए न कि अधिकार का प्रदर्शन वाला। उन्होंने कहाकि हाल ही में एक पुस्तक के विमोचन पर एक कार्यक्रम हुआ था, सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा लिखी गई पुस्तक का फोकस मूल ढांचे पर था, दिन चुना गया 14 अप्रैल, जो डॉ बीआर अंबेडकर से जुड़ा हुआ है, पुस्तक के लेखक ने 13 अप्रैल का जिक्र किया, उन्होंने आजादी से पहले 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में हुई एक घटना का वर्णन किया, जहां जनरल डायर के नेतृत्व में हमारे ही लोगों ने हमारे ही लोगों की हत्या और नरसंहार किया था, फिर वे मूल ढांचे के सिद्धांत पर आए और कहाकि इस सिद्धांत के कारण अब ऐसा नहीं हो सकता।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि केशवानंद भारती ने हमें जो सिद्धांत दिया है, उसपर एक पल केलिए गौर करें, सुप्रीम कोर्ट के 13 जज इकट्ठे हुए, विभाजन 7:6 था, इससे ज्यादा नहीं हो सकता, फैसला 24 अप्रैल 1973 को आया और लेखक के अनुसार यह हमारा उद्धारक है, लेकिन हमारे पास इस बुनियादी संरचना सिद्धांत केबाद एक प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी बचाने केलिए 25 जून 1975 को आपातकाल लगा दिया। यह आकर्षक प्रवचन, जिज्ञासु माना जाता था, किसी ने एक सवाल नहीं पूछाकि यह जो अवतार था, यह जो अमृत था, जिसका इतना महिमामंडन किया जा रहा था, जलियांवाला बाग के संदर्भ में वे ताज़ा इतिहास को भूल गए, आपातकाल लगा दिया गया, लाखों लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया और यह 21 मार्च 1977 तक था। इस बुनियादी ढांचे केसाथ सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान आपके पास कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बुनियादी ढांचे की अभेद्यता को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने टुकड़े-टुकड़े कर दिया, 9 उच्च न्यायालयों के निर्णयों को पलटते हुए कहा गयाकि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहाकि देश की सर्वोच्च अदालत न्यायपालिका तक पहुंच होनी चाहिए। पुस्तक के लेखक पूर्व न्यायाधीश, जो इस सिद्धांत की प्रशंसा करते हैं, जो नागरिक अधिकारों पर हमले के विरुद्ध पूर्ण सुरक्षा कवच है, इस बात से अनभिज्ञ हैंकि उनके जीवनकाल में क्या हुआ था।
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि उन्होंने एक संरचित मंच बनाने का निर्णय लिया है, जो कनेक्टिविटी उत्पन्न करेगा और यह मंच आम लोगों को राज्यसभा-लोकसभा में कानून के बारेमें सभी जानकारी प्रदान करेगा। उन्होंने जानकारी दीकि वे और लोकसभाध्यक्ष लगभग दो महीने में इसे लॉंच करेंगे, ताकि इस मंच से देश के लोगों को संसद सदस्यों के बारेमें प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने का लाभ हो और संविधान सभा की बहस से लेकर वर्तमान बहसों तक भारतीय संसद के अभिलेखागार तक भी पहुंच प्राप्त होगी। 

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