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Tuesday 22 April 2025 06:42:36 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि किसीभी लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और मुझे यह अकल्पनीय रूपसे दिलचस्प लगता हैकि कुछ लोगों ने हालही में यह विचार व्यक्त किया हैकि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं, इस देश में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के बारेमें गलत धारणा से कोई दूर नहीं हो सकता, चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक। उपराष्ट्रपति ने कहाकि मेरा मानना हैकि एक नागरिक सर्वोच्च है, क्योंकि एक राष्ट्र और लोकतंत्र नागरिकों द्वारा ही निर्मित होता है, उनमें से प्रत्येक की खास भूमिका है। उन्होंने कहाकि लोकतंत्र की आत्मा प्रत्येक नागरिक में बसती है और धड़कती है, लोकतंत्र तभी खिलेगा, इसका मान और अधिक तभी बढ़ेगा, जब नागरिक जागरुक होंगे, नागरिक अपना योगदान देंगे, नागरिक जो योगदान देता है, उसका कोई अन्य विकल्प नहीं है।
उपराष्ट्रपति और दिल्ली विश्वविद्यालय के पदेन कुलाधिपति जगदीप धनखड़ आज दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम 'कर्तव्यम' में मुख्य अतिथि के रूपमें संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहाकि संविधान में संसद से ऊपर किसी सत्ता की कल्पना नहीं की गई है, संसद सर्वोच्च है, ऐसेमें मैं आपको बता दूंकि यह देश के प्रत्येक व्यक्ति के समान ही सर्वोच्च है। उन्होंने कहाकि लोकतंत्र में 'हम लोग' का एक हिस्सा एक अणु हैं और उस अणु में परमाणु शक्ति है, वह परमाणु शक्ति चुनावों के दौरान परिलक्षित होती है, इसीलिए हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। उपराष्ट्रपति ने यहभी कहाकि संविधान का सार तत्व, उसका महत्व, उसका अमृत-संविधान की प्रस्तावना में समाहित है और यह क्या कहता है? 'हम, भारत के लोग' सर्वोच्च शक्ति उनके पास है। उन्होंने कहाकि भारत के लोगों से ऊपर कोई नहीं है और हम, भारत के लोग, संविधान केतहत अपने जन प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी आकांक्षाओं, अपनी इच्छाओं और अपनी भावनाओं को प्रतिबिंबित करने का विकल्प चुनते हैं और वे चुनावों के माध्यम से प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराते हैं-कभी-कभी बहुत अधिक जवाबदेह भी ठहराते हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि 1977 में आपातकाल लगाने वाले एक प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराया गया था, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान लोगों केलिए है और इसकी सुरक्षा का दायित्व निर्वाचित प्रतिनिधियों का है, वे इस बात के अंतिम स्वामी हैंकि संविधान की विषय सामग्री क्या होगी। लोकतंत्र में नागरिकों के कर्तव्य पर उपराष्ट्रपति ने कहाकि लोकतंत्र केवल सरकार द्वारा शासन करने केलिए नहीं है, यह सहभागी लोकतंत्र है, जिसमें केवल कानून ही नहीं है, बल्कि इसमें संस्कृति और लोकाचार भी शामिल है। उन्होंने कहाकि नागरिकता केवल एक दर्जा नहीं, बल्कि यह कार्रवाई की मांग करती है, लोकतंत्र सरकारें नहीं बनाती हैं, लोकतंत्र व्यक्तियों द्वारा बनता है, क्योंकि व्यक्तियों पर हमारे प्रतिमानों को बनाए रखने, हमारी विरासत को संरक्षित करने, संप्रभुता की रक्षा करने, भाईचारे को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी होती है, सरकार की भूमिका हैकि वह बाधा न बने। सरकार की भूमिका है कि वह सकारात्मक नीतियां बनाए, किंतु सरकार मेरे लिए एक अच्छा स्टेडियम, एक अच्छा फुटबॉल मैदान देने जैसा है, गोल तो व्यक्तियों द्वारा किए जाने हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसीभी स्वस्थ लोकतंत्र में संवाद की गुणवत्ता के महत्व की ओर ध्यान दिलाते हुए कहाकि यदि आप लोकतंत्र के स्वास्थ्य को जानना चाहते हैं, जैसे किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य, यदि आप विश्लेषण करना चाहते हैंकि हमारा लोकतंत्र कितना स्वस्थ है तो आपको संवाद की गुणवत्ता का पता लगाना होगा, हमारे पास किस तरह का संवाद है। क्या हमारा संवाद नियंत्रित है? क्या हमारे संवाद में हेरफेर किया जाता है? क्या हमारे संवाद को धनबल, बाहुबल, विदेशी हितों, इस देश के हितों के खिलाफ काम करने वाले लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है? आपको समझना होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहाकि हमें समझना होगाकि लोकतंत्र अभिव्यक्ति और संवाद से ही पनपता है, अभिव्यक्ति और संवाद लोकतंत्र के मूल मंत्र हैं। उन्होंने कहाकि अगर अभिव्यक्ति के अधिकार का गला घोंटा जाता है या उसे नियंत्रित किया जाता है तो लोकतंत्र खत्म हो जाता है, जैसाकि आपातकाल के दौरान किया गया था, लेकिन अगर आपके पास अभिव्यक्ति का अधिकार है और वह अभिव्यक्ति अहंकार और अहं को दर्शाती है, जहां आप मानते हैंकि आपकी अभिव्यक्ति सर्वोपरि है, जहां आप किसी भी अलग दृष्टिकोण को मानने से इनकार करते हैं, दूसरे पक्ष का अवलोकन करने से भी इनकार करते हैं तो वह भी हमारी सभ्यता के अनुसार सही अभिव्यक्ति नहीं है, क्योंकि हर अभिव्यक्ति संवाद केलिए सम्मान और दूसरे के दृष्टिकोण केलिए सम्मान की मांग करती है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि आपको हमेशा चुनौती केलिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहाकि चुनौती देना कोई शारीरिक कार्य नहीं है, यह विचारों की चुनौती है, विचारों में अंतर है, मैं आपसे असहमत हूं, इसका मतलब यह नहीं हैकि मैं असहमत हूं, इस तरह के आदान-प्रदान केलिए हमेशा जगह होनी चाहिए, इसलिए अभिव्यक्ति और संवाद पूरक हैं, वे एक साथ लोकतंत्र को परिभाषित करते हैं, अगर हम अपनी सभ्यतागत विरासत में गहराई से उतरें तो वैदिककाल में इसे 'अनंतवाद' अनंत दृष्टिकोणों का विचार कहा जाता था। उन्होंने कहाकि वाद विवाद की परंपरा थी, बहस और प्रवचन और यह परंपरा अहंकार से मुक्त थी, वाद विवाद अहंकार और दंभ को खत्म कर देता है, क्योंकि अगर मैं मानता हूंकि केवल मैं ही सही हूं और कोई अन्य सही नहीं हो सकता तो वह अहंकार न केवल व्यक्ति, बल्कि संस्थाओं को भी कलंकित करता है, इसलिए एक स्वस्थ लोकतंत्र केलिए अभिव्यक्ति और संवाद अनिवार्य हैं। उन्होंने कहाकि अगर आप सही बात सही समय पर सही समूह और सही व्यक्ति से बात करने में हिचकिचाते हैं तो आप न केवल खुद को कमजोर करेंगे, बल्कि उन सकारात्मक शक्तियों को भी गहरा आघात पहुंचाएंगे। इसलिए, अभिव्यक्ति और संवाद का अत्यधिक महत्व है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि राष्ट्र उद्योगपतियों द्वारा नहीं बनाए जाते हैं, राष्ट्र व्यक्तियों द्वारा बनाए जाते हैं, व्यक्ति की शक्ति, जैसाकि मैंने कहा एक अणु है, शक्ति अणु है, आपके पास वह शक्ति है, आपको केवल इसका एहसास होना चाहिए। जगदीप धनखड़ ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका पर जोर देते हुए कहाकि भाषण की गुणवत्ता हमारे लोकतंत्र को परिभाषित करती है और इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है, हमारे युवाओं को पक्षपात से ऊपर उठकर विचारशील विमर्श करना चाहिए, हमारे युवा इस महत्वपूर्ण मोड़ पर चूक नहीं सकते, जब भारत आगे बढ़ रहा है, उन्नति कर रहा है। उन्होंने कहाकि हमारी नियति हमें एक वैश्विक शक्ति बनाने वाली है, हम एक विकसित राष्ट्र होंगे, आप पक्षपातपूर्ण हितों से बंधे नहीं रह सकते, आपको केवल राष्ट्रीय हितों में विश्वास करना होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन महाविद्यालय प्रोफेसर बलराम पाणि, दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण दिल्ली परिसर के निदेशक प्रकाश सिंह और गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।