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बीजिंग। तिब्बत में सब कुछ ठीक-ठाक दिखाने का चीन का दांव उलटा पड़ रहा है। पिछले दिनों ल्हासा लाये गये विदेशी पत्रकारों के सामने जोकहांग मंदिर के करीब 30 तिब्बती भिक्षुओं ने नाटकीय तरीके से पेश होकर विरोध प्रदर्शन किया और उनके सामने चीन की असलियत रखी ।
इन भिक्षुओं ने दलाई लामा के समर्थन में नारे लगाये और चीन के इस दावे को गलत बताया कि उनके आध्यात्मिक गुरू उन्हें भड़काकर हिंसा फैला रहे हैं। उधर चीन के आंेलंपिक खेलों पर भी तिब्बत का पूरा असर दिखाई दे रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कड़ी सुरक्षा के बावजूद यह विरोध प्रदर्शन किया गया। चीनी प्रशासन अपनी सुरक्षा में बीजिंग में रह रहे विदेशी पत्रकारों को ल्हासा लेकर आया था। उसका मकसद यहां की स्थिति से विदेशी संवाददाताओं को अवगत कराना था। लेकिन उसका यह दांव उलटा पड़ गया। प्रदर्शन कर रहे एक भिक्षु ने नारा लगाया कि तिब्बत आजाद नहीं है और यह कहते-कहते वह रोने लगा। भिक्षुओं ने कहा कि तिब्बत में स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। उन्होंने चीन के इस आरोप का खंडन किया कि दलाई लामा ने दंगों के लिए उकसाया था। गौरतलब है कि चीन ने 1989 के बाद पहली बार तिब्बत में बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शन को कवर करने से मीडिया को रोका हुआ है।
चीन में ओलंपिक खेलों के मद्देनज़र वहां के प्रमुख शहरों में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं तथापि वहां कुछ जगहों पर विद्रोह की आवाजें कम नहीं हुई हैं। तिब्बती आंदोलन के बहुत से नेता तो जेलों में बंद हैं। चीन ओलंपिक खेलों की आड़ में दुनिया का ध्यान तिब्बत से हटाने की कोशिश कर रहा है लेकिन ये खेल भी तिब्बत के अंतर्राष्ट्रीय तनाव को कम नहीं कर पा रहे हैं। खेलों पर तिब्बत का साया मौजूद है और इस मिशन में तिब्बत के आंदोलनकारी अपना काम कर रहे हैं।