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लखनऊ।लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से जहां राजनीतिक दलों के दिग्गज प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं वहां कुछ ऐसे प्रत्याशी भी चुनाव लड़ रहे हैं जो बाहुबल, धनबल, भ्रष्टाचार, जातिवाद, दल-बदल और राजनीति में अपराधीकरण के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। यह माना कि चुनावी समीकरणों में वे बहुत पीछे हैं लेकिन जहां तक उनके चुनावी मुद्दो का मामला है तो वह मतदाताओं को प्रभावित करता है और इस चिंतन के लिए मजबूर करता है कि राजनीति में यदि ऐसे प्रत्याशी नहीं उतरेंगे तो फिर लोकतंत्र का क्या होगा। बुद्धिजीवी वर्ग में लोकतांत्रिक गतिविधियों, परंपराओं और उसके पात्रों को लेकर हमेशा बहस छिड़ी होती है जिसमें बुद्धिजीवी, किसी भी प्रत्याशी के व्यक्तित्व की बाल की खाल तो निकाल देते हैं लेकिन जब परिणाम सामने आते हैं तो वहां व्यक्तित्व के स्थान पर कोई और नजर आता है, जिसे आप अपना प्रतिनिधि मानने में भी भारी संकोच करें। फिर जनता क्यों नहीं ऐसे प्रत्याशी को चुनती जो कि उनकी आकांक्षाओं, भावनाओं और दुख-सुख के करीब हो।
अंबिका प्रसाद भी लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वह निर्दलीय हैं और एक अनुभवी अधिवक्ता होने के साथ-साथ दर्शन राजनीतिक, सामाजिक मामलों पर मजबूत पकड़ रखते हैं। जागो भारत जैसे अभियान से प्रेरणा लेकर उन्होंने लखनऊ से अपना पर्चा भरा और वह अपना प्रचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत के विश्व के भ्रष्टम देशों में से एक होने के कलंक को धोने के लिए जागो भारत सामाजिक जन अभियान चला रहे हैं जिसका पहला लक्ष्य भारतीय राजनीति को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के चलाने के चलन को रोकना है जिसके कारण आज राजनीति में अच्छे चरित्रवान योग्य लोग राजनीति से दूर भाग रहे हैं और उनकी जगह माफिया सरगना हत्यारे और अन्य गंभीर आरोपों के गुनाहगार आ रहे हैं। इनके कारण राजनीति के इस शानदार उत्तरदान को ग्रहण लग रहा है। इस वक्त हर कोई मान कर बैठ गया है कि जो प्रत्याशी चुनाव मैदान में है उसमें समाज को दबाने, गुंडों को संरक्षण देने और भ्रष्ट तरीकों से धन अर्जित करने की खूबियां होंगी।
अंबिका प्रसाद वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से बहुत निराश हैं और उसका डटकर सामना करने के लिए ही चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने अपने इश्तिहार में जो वादे किए हैं और बातें कहीं हैं यदि उन पर आधारित होकर मतदान हो जाए तो वास्तव में इस राजनीति को वो लोग मिलेंगे जिनकी समाज, शासन और व्यवस्था को हर वक्त जरूरत रहती है। उनका कहना है कि उनका मकसद राजनीति में अच्छे लोगों को आने के लिए प्रेरित करना है। जातिवाद खत्म करने के लिए उन्होंने अपने नाम के आगे से जाति प्रकट करने वाला शब्द 'ओझा' हटा दिया है और लखनऊ के मतदाताओं से अपील किया है कि यदि वे उनके विचारों और लक्ष्यों से सहमत हैं तो उन्हें अनिवार्य कर्तव्य समझकर वोट करें उनका चुनाव चिन्ह नगाड़ा है। चुनाव में चंदे पर भी उनके अलगे ही विचार हैं।
अंबिका प्रसाद ने अपने इश्तिहार में अनुरोध किया है कि उनका पर्चा सौ लोगों को अवश्य पढ़ाया जाए। इस तरह मैं वह एक चना हूं जो हो सकता है अभी भाड़ मैं फोड़ सकूं लेकिन आने वाले समय में हजारों चने जरूर पैदा करूंगा। उन्होंने वादे किए हैं कि यदि वे चुनाव जीते तो वह सब करके दिखाएंगे जो बासठ वर्षों में भी नहीं हुआ। तब फिर राजनीति में अच्छे लोग ही आएंगे। अंबिका प्रसाद लखनऊ में वकालत करते हैं और लखनऊ खंडपीठ में एक समाज से भी अधिवक्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं। पत्रकारिता में भी सक्रिय हैं और जजमेंट आज तक नाम के समाचार पत्र के संपादक हैं। वे लखनऊ में केबिल सेवा उपभोक्ता संरक्षण समिति के भी अध्यक्ष हैं और जुडीशियल सोशल सर्विस के संयोजक हैं। उन्हें उम्मीद है कि वे जीतेंगे। उनका यह भी कहना है कि राजनीति में गंदगी के खिलाफ उनका अभियान रूकेगा नहीं बल्कि चुनाव बाद भी जारी रहेगा। वे चाहते हैं कि चुनाव को धन-बल से मुक्ति मिले और लोकतंत्र मजबूत हो।
अंबिका प्रसाद केवल एक गाड़ी से ही अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं। वे प्रात:काल के समय जहां अपनी फिटनेस के लिए सुरक्षित रखते हैं वहीं इस वक्त वे इस समय का उपयोग जनसंपर्क के लिए भी कर रहे हैं। प्रात: भ्रमण पर पार्कों में निकले महानुभावों के बीच वे अपनी तर्क संगत बातें रखते हैं और राजनीति में शुचिता की बहस छेड़कर आगे बढ़ जाते हैं। देखना है कि लखनऊ के मतदाता उन्हें कितने अधिक वोटों से जिताकर देश की संसद में भेजते हैं। यह तय है कि अंबिका प्रसाद का चुनाव जीतना उन लोगों के लिएआशावादी होगा जो वर्तमान व्यवस्था से निराश, हताश हैं और महसूस कर रहे हैं कि भविष्य में राजनीति का क्या होगा?