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देश में स्थिति असामान्य एवं कठिन-चिदंबरम

पुलिस महानिदेशकों से गृहमंत्री ने सहयोग मांगा

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चिदंबरम-पुलिस सम्मेलन/chidambaram-police conference

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि 'मुझे लगता है कि देश में परिस्थितियां असामान्‍य और कठिन हैं, हमारे सुरक्षा बलों, विशेष रूप से अभिसूचना से जुड़े लोगों की क्षमता, दक्षता और प्रतिबद्धता के बारे में प्रश्‍न उठाए गए हैं, विशेष रूप से 'अनसुलझे' मामलों की जो जांच चल रही है, उनके बारे में संदेह व्‍यक्‍त किया गया है, मामलों के विचारणों के पूरा होने और अभियुक्‍तों की दोषसिद्धि में लग रहे अधिक समय के बारे में भी चिंता व्‍यक्‍त की गई है, भारत की अन्‍य देशों, विशेष रूप से संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के साथ तुलना की गई है, मेरे विचार से पुलिस बलों और विशेष रूप से अभिसूचना समुदाय के शीर्ष अधिकारियों के लिए जनता के साथ अधिक खुलेपन से और प्राय: बातचीत करते रहने की आवश्‍यकता है। उन्होंने कहा कि जनता को यह बताना जरूरी है कि प्रत्‍येक राज्‍य में पुलिस बल ने क्षमता निर्माण, भर्ती, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी के समावेशन, अभिसूचना-संग्रह, मामलों के हल और हिंसा के स्‍तर में सुधार और कानून एवं व्‍यवस्‍था बनाए रखने की दृष्टि से क्‍या हासिल किया है, इसके साथ-साथ, पुलिस बलों को यह भी बताना चाहिए कि वर्षों की उपेक्षा के कारण सुरक्षा बल देश के समक्ष मौजूदा बहु-आयामी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं।

सरकार में विचाराधीन सांप्रदायिक विरोधी बिल का अपरोक्ष रूप से संदर्भ लेते हुए उन्होंने कहा कि कई वर्षों तक, सांप्रदायिक हिंसा सरकारी रिकॉर्डों में सबसे बड़ा कलंक बनी रही। वर्ष 2003 से आठ वर्षों के दौरान प्रति वर्ष औसतन 750 घटनाएं घटीं, किंतु इनमें हताहतों की संख्‍या कम थी और गिरावट पर रही। वर्ष 2011 के प्रथम छ: महीनों में, घटनाओं और हताहतों की संख्‍या में तेजी से कमी आयी है, फिर भी, जब तक ऐसी ताकतों का अस्तित्‍व है, जो मुद्दों को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयत्‍न करती हैं, तब तक सांप्रदायिक हिंसा के भड़कने का खतरा बना रहेगा, अत: आत्‍म-संतुष्टि के लिए कोई स्‍थान नहीं है और मैं आपसे सतर्क रहने का अनुरोध करता हूं।

उन्होंने कहा कि दूसरी सतत चुनौती नागरिक उपद्रवों से निपटने की है, किसी उदार समाज में असहमत होने और विरोध करने का अधिकार मूल अधिकार होता है और हमने पाया है कि विरोध प्राय: हिंसक हो जाते हैं। वर्ष 2010 के ग्रीष्‍मकाल में हमने जम्‍मू एवं कश्‍मीर में अंधाधुंध पथराव की घटना देखी है, हमने बहुत से राज्‍यों में बंद और रास्‍ता रोको जैसी घटनाएं भी देखी हैं, जिनकी वजह से संपत्ति का व्‍यापक नुकसान हुआ, राष्‍ट्रीय राजमार्गों को 'अवरुद्ध' करने का नया तरीका भी देखने को मिला है, जिससे देश के विभिन्‍न हिस्‍सों से संपर्क खत्‍म हो जाता है, विरोध करने वाले नि:शस्‍त्र नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए गैर-घातक तरीकों का प्रयोग नई मानक प्रचालन क्रियाविधि होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्‍यों में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं, एनएससीएन, एनएससीएन (के) के साथ युद्ध विराम समझौते हैं, हम एनडीएफबी, यूपीडीएस, डीएचडी, एएनवीसी, केएनओ, यूपीएफ के साथ और हाल में उल्‍फा के साथ भी अभियान-निलंबन समझौते हुए हैं। एनएससीएन (आईएम) और उल्‍फा के साथ औपचारिक वार्ता की शुरुआत का जनता ने स्‍वागत किया है, इनसे अलग हुए कुछ गुट और कुछ छोटे गुट अभी भी वार्ता के प्रस्‍ताव को स्‍वीकार नहीं कर रहे हैं, मणिपुर में, सात मैतेयी भूमिगत संगठनों का एक संयुक्‍त मोर्चा गठित किया गया है, इसलिए पूर्वोत्तर राज्‍यों में हिंसा के खतरे और लूट-खसोट के मामलों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों की बड़ी संख्‍या में उपस्थिति एक आवश्‍यकता है, हम तभी संतुष्‍ट हो पाएंगे जब विभिन्‍न गुटों के साथ जारी बातचीत के परिणामस्‍वरूप सशस्‍त्र कॉडर समाप्‍त हो जाएंगे और सम्‍मानजनक राजनैतिक समझौते हो जाएंगे।

चिदंबरम ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद देश में सबसे अधिक हिंसक आंदोलन है, सीपीआई (माओवादी) देश का सबसे बड़ा हिंसक संगठन बना हुआ है, वामपंथी उग्रवाद से निपटना केंद्र और राज्‍यों की साझा जिम्‍मेदारी है, यद्यपि, घटनाओं एवं हताहतों की संख्‍या हिंसा के स्‍तर में कमी का संकेत देती प्रतीत होती है, परंतु इसका बहुत बड़ा श्रेय पश्चिम बंगाल में बदली हुई स्थिति को जाता है, मुझे यह बताते हुए खेद है कि बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्‍ट्र और उड़ीसा में हिंसा में कोई उल्‍लेखनीय कमी नहीं आयी है, ऐसी सूचनाएं हैं कि पश्चिम बंगाल में भी सीपीआई (माओवादी) ने राज्‍य इकाई को जंगलमहल में गुरिल्‍ला ठिकाने बनाने और संघर्ष को तेज करने के निर्देश दिये हैं, सीपीआई (माओवादी) ने पीपुल्‍स लिबरेशन गोरिल्‍ला आर्मी में कम-से-कम चार और कंपनियां जोड़ी हैं और सशस्‍त्र मुक्ति संघर्ष के माध्‍यम से सत्ता हथियाना इसका उद्देश्‍य बना हुआ है। चिदंबरम ने कहा कि मैं पुलिस महानिदेशकों से यह अपील करना चाहूंगा कि वे स्‍वयं विद्रोह-रोधी उपायों की जिम्‍मेदारी लें और वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध अल्‍प एवं मध्‍यम अवधि की रणनीतियां तैयार करें।

गृहमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने वामपंथी उग्रवाद से निपटने में अपनी जिम्‍मेदारी निभायी है, हमने वर्ष 2009 में तैनात की गई 37 केंद्रीय सशस्‍त्र पुलिस बल बटालियनों के मुकाबले 71 बटालियनें तैनात की हैं, सुरक्षा संबंधी व्‍यय योजना के अंतर्गत वर्ष 2008-09 में मात्र 80 करोड़ रुपये के बजट आबंटन के मुकाबले इसे वर्ष 2011-12 में बढ़ाकर 337 करोड़ रुपये कर दिया गया है, इसी प्रकार, एसआईएस योजना के अंतर्गत वर्ष 2009-10 में मात्र 30 करोड़ रूपये के बजट आबंटन के मुकाबले इसे वर्ष 2011-12 में बढ़ाकर 140 करोड़ रुपये कर दिया गया है, दो करोड़ रुपये प्रति पुलिस थाना की लागत से चारदीवारी-युक्‍त 400 पुलिस थानों को वित्त पोषित करने का प्रस्‍ताव किया है, तेरह विशेष इंडिया रिजर्व बटालियनों के गठन को भी स्‍वीकृति प्रदान की गई है, जिनमें विकास कार्यों में सहायता और उनके कार्यान्‍वयन के लिए सुरक्षा एवं इंजीनियरी घटक शामिल होंगे और अधिक हेलीकॉप्‍टरों को शामिल किया जा रहा है और अन्‍य प्रौद्योगिकीय सहायता भी मुहैया करायी जा रही है। गृहमंत्री ने बताया कि एकीकृत कार्य योजना में 60 जिलों के जिला प्रशासन के लिए 3,300 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं और 67,175 कार्य कार्यान्‍वयनाधीन हैं। वर्ष 2012-13 में 18 और जिले शामिल किए जाएंगे।

चिदंबरम ने कहा कि देश में दो महीने के अंदर दो आतंकी हमले होना वास्‍तव में हमारे रिकॉर्ड पर कलंक है, इसके लिए केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों की देशभर में कड़ी आलोचना हुई है, एक ओर जहां हम घटनाओं की जिम्‍मेदारी लेते हैं और वाजिब आलोचना को स्‍वीकार करते हैं, वहीं हमारा यह भी कर्तव्‍य है कि जिस संदर्भ में ऐसे आतंकवादी हमले होते हैं, हम उसका भी उल्‍लेख करें, अमेरिका सहित विश्‍व का कोई भी देश आतंकवाद के खतरे से पूर्णतया उन्‍मुक्‍त नहीं है, वर्ष 2011 में अगस्‍त तक 22 देशों में आतंकवाद की 279 प्रमुख घटनाएं घटित हुई हैं, इनमे से इराक, अफगानिस्‍तान और पाकिस्‍तान आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्‍तान और पाकिस्‍तान आतंकवाद का केंद्र-बिंदू हैं, पांच प्रमुख आतंकवादी संगठनों में से चार पाकिस्‍तान आधारित हैं और उनमें से तीन-एलईटी, जेईएम और एचएम निरंतर भारत को निशाना बनाए हुए हैं। जम्‍मू एवं कश्‍मीर में नियंत्रण रेखा के पार से घुसपैठ के प्रयासों में कोई कमी नहीं आयी है, इसके अलावा, नेपाल और बांग्लादेश के रास्‍ते से भी आतंकवादी भारत में घुसपैठ के प्रयास करते हैं और वे श्रीलंका से तामिलनाडु में पारगमन को सुरक्षित पाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में भी आतंकवादी मॉडयूल्‍स है, उनमें अतिवादी युवाओं को अपने चंगुल में फंसाने की क्षमता है, कुछ मॉडयूल्‍स इंडियन मुजाहिद्दीन नामक संगठन के तहत परस्‍पर जुड़े हुए हैं, प्रतिबंधित स्‍टूडेंट इस्‍लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के बहुत से पुराने कॉडरों ने आईएम कॉडरों का रूप ले लिया है, कुछ अन्‍य भारतीय मॉडयूल्‍स भी हैं, जो दक्षिणपंथी धार्मिक कट्टरवाद अथवा पृथकतावाद का समर्थन करते हैं, इनमें से कई मॉडयूल्‍स ने बम बनाने की क्षमता हासिल कर ली है।

गृहमंत्री ने कहा कि ग्यारह सितंबर 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने अल-कायदा की अपनी सुरक्षा के लिए एक मुख्‍य खतरे के रूप में पहचान करके अल-कायदा, इससे संबद्ध संगठनों और इसको मानने वालों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। पिछले 10 वर्षों के दौरान संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका ने स्‍वदेश सुरक्षा विभाग (डिपार्टमेन्‍ट ऑफ होमलैण्‍ड सिक्‍योरिटी) का गठन किया, इस विभाग के तहत 22 एजेंसियों और निकायों को शामिल किया, दो युद्ध लड़े, और अपने एजेंटों एवं सैन्‍य दलों को अन्‍य देशों में भेजा। उसके छह हजार सैनिक मारे गए, 1,37,000 नागरिकों ने अपनी जान गंवायी और 7.8 मिलियन लोग शरणार्थी बने। इन सबकी लागत 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी। जून 2011 में प्रस्‍तुत एक दस्‍तावेज़ में संयुक्‍त राज्‍य अमेरका ने स्‍वीकार किया कि काम अभी पूरा नहीं हुआ है, विगत 10 वर्ष के दौरान, अमेरिका की भूमि पर तीन आतंकवादी हमले हुए, जिनमें 16 व्‍यक्ति मारे गए और 34 घायल हुए और लगभग तीन आतंकवादी हमले ऐसे थे, जो सफल हो जाते, परंतु जिन्‍हें अभिसूचना की मदद से वहां के सुरक्षाबलों ने विफल कर दिया। गृहमंत्री ने प्रश्न किया कि क्‍या हमने मुंबई के आतंकी हमलों के बाद पर्याप्‍त क्षमता का निर्माण किया है? इसका जवाब, हां और नहीं, दोनों हैं, अभी तक हमने काफी कुछ नहीं किया है।

चिदंबरम ने कहा कि अभिसूचना ब्‍यूरो और राज्‍य पुलिस बलों के अभिसूचना-विंगों को अपना प्रच्‍छन एवं ठोस काम करते रहना चाहिए, चूंकि वे प्रच्‍छन और सामान्‍यत: प्रकट रूप में दिखाई नहीं देने वाले होते हैं, इसलिए उनके हिस्‍से में बहुत थोड़ी प्रशंसा ही आयेगी, हमारी जनसंख्‍या और भू-भाग के आकार को देखते हुए, हमारी अभिसूचना एजेंसियों का आकार छोटा है, वे केवल आतंकवादियों के संबंध में सूचना एकत्र करने के काम में ही व्‍यस्‍त नहीं हैं, उनको घुसपैठियों, विद्रोहियों, वामपंथी उग्रवादियों और जाली भारतीय मुद्रा के व्‍यापारियों के बारे में भी सूचना एकत्र करनी होती है, फिर भी, अभिसूचना एजेंसियों को आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में महत्‍वपूर्ण सफलताएं हासिल हुई हैं।

उदाहरणार्थ, ओएनजीसी प्रतिष्ठानों पर हमले की योजना बनाने वाले अब्‍दुल लतीफ और रियाज़ को मार्च 2010 में मुंबई में गिरफ्तार किया गया, जिया उल हक को मई 2010 में हैदराबाद में गिरफ्तार किया गया और एक बहुराष्‍ट्रीय कंपनी के विरुद्ध बड़ी आतंकवादी कार्रवाई को विफल किया गया। सिमी के 10 सदस्‍यों वाले मॉड्यूल को जून 2011 में मध्‍य प्रदेश में विफल किया गया और तीन न्‍यायाधीशों की हत्‍या करने की उनकी योजना को विफल किया गया। उन्होंने कहा कि वे भारत सरकार की ओर से उन्हें पूरा सहयोग देने का वादा करते हैं मगर इसमें केंद्र और राज्‍यों की साझा जिम्‍मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी पिछले 12 महीनों में अपनी जान गंवाने वाले सुरक्षा बल के जवानों को याद करें- एक सितंबर 2010 से 31 अगस्‍त 2011 तक पूर्वोत्तर में 29, जम्मू और कश्‍मीर में 41 और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्‍यों में 163 पुलिस कार्मिक मारे गए हैं, हम इन जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके परिवारों को वचन देते हैं कि संकट की घड़ी में हम उनके साथ खड़े हैं।

सम्मेलन में गृह राज्यमंत्री मुल्‍लापल्‍ली रामचंद्रन और जितेंद्र सिहं, सम्‍मेलन के अध्‍यक्ष नेहचल संधू डीआईबी, राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, गृह सचिव आरके सिंह, आं‍तरिक सुरक्षा सचिव यूके बंसल, राज्‍यों और संघ राज्‍य क्षेत्रों के पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुख और प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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