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लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लड़खड़ा रहा है- अध्यक्ष प्रेस परिषद

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प्रेस काउंसिल-मीडिया सेंटर/press council-media centre

लखनऊ।भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ज्ञानेंद्र नारायण रे ने कहा है कि समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रसार तो बढ़ रहा है लेकिन पत्रकारिता में विश्‍वास और मीडिया का प्रकाश धीमा पड़ रहा है। वर्तमान और भविष्य की पत्रकारिता पर उनकी निराशा का भाव बिल्कुल स्पष्ट है। न्यायमूर्ति रे की यह टिप्पणी इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण और विश्लेषणात्मक है क्योंकि वे एक न्यायाधीश रहने के साथ-साथ देश के चौथा स्तंभ कही जानी वाली प्रेस को उन्होंने न्यायधीश रहते हुए और अब प्रेस परिषद का अध्यक्ष रहते हुए बहुत करीब से देखा है। उनकी टिप्पणियां केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं बल्कि उन्होंने पत्रकारिता के पूर्णरूप से व्यवसायीकरण हो जाने की बात कहते हुए यह आवश्यकता जताई कि ऐसे में ऐसे में सरकार मीडिया कमीशन बनाए।
न्यायमूर्ति
ज्ञानेंद्र नारायण रे ने यह बात लखनऊ में गोमतीनगर के विनीतखंड में बने मीडिया सेंटर का उद्घाटन करने के बाद 'पत्रकारिता पर व्यवसायिकता का प्रभाव' विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण के इस युग में समाचार पत्रों में संपादक के पद का अवमूल्यन हो गया है। संपादक के स्थान पर पूंजीपति, उद्योगपति वर्ग ने अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया है। संपादक और संस्थान के अवमूल्यन का नतीजा समाचारों के स्तर में आई गिरावट के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है। मीडिया को अब लाभ से जोड़ा जा रहा है और देश में मीडिया सबसे बड़ी इंडस्ट्री बन चुका है।
न्यायमूर्ति
रे ने कहा कि यह सत्य है कि किसी भी अखबार को चलाने के लिए पूंजी का अपना महत्व है लेकिन व्यवसायिकता की दौड़ में आचार संहिता और मीडिया के महत्व को भी तो भुलाया नही जा सकता। स्वाधीनता के बाद राष्ट्र और समाज के अन्य वर्ग के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी क्रांति आई। लेकिन एक समय बाद जिस प्रकार से व्यवसायवाद ने अपने लाभ के लिए पैर पसारने शुरू कर दिए हैं उसको देखते हुए देश में मीडिया कमीशन की सख्त जरूरत है। अधिक विज्ञापन पाने, बिक्री बढ़ाने और आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा ने पत्रकारिता के मूल्यों को कुछ हद तक पीछे ढकेलने का काम शुरू कर दिया है। कभी ये ही मूल्य देश के स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता के एक पहचान थें। आज यदि समाचार पत्र को जीवित रहना है तो उसे विज्ञापनदाताओं पर निर्भर रहना होगा। इसलिए मीडिया पूंजीपतियों का मुंह देखने के लिए विवश है।
प्रेस
परिषद अध्यक्ष ने विषय को काफी गंभीरता से लिया और गहराई से उन खतरों की ओर इशारा किया जो पत्रकारिता को खत्म करने की ओर ले जा रहें हैं। उन्होंने ये शब्द इस्तेमाल किए कि 'लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब लड़खड़ा रहा है' उन्होंने सुझाव दिया कि पत्रकारिता को बाज़ारवाद से बाहर निकालते हुए पत्रकारों को आदर्श के मार्ग पर ही चलना होगा। समाचार पत्र चलाने में प्रबंधकीय प्रशासनिक और व्यवसायिक पक्ष को संपादकीय पक्ष से स्वतंत्र रखा जाना चाहिए। इस सावधानी की भी जरूरत है कि मालिक और संपादक एक ही न हों। न्यायमूर्ति रे ने ध्यान आकृष्ट करने पर बाद में यह भी कहा कि आम चुनाव में कुछ प्रमुख समाचार पत्रों ने चुनाव की खबरों की रिपोर्टिंग और प्रकाशन में प्रेस परिषद के मार्गदर्शन और दिशा-निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि खबरों और विज्ञापनों के बीच सीमा रेखा का लोप ही कर दिया गया। ये पाठकों के प्रति अन्याय है।
न्यायमूर्ति
रे काफी देर तक मीडिया कर्मियों के बीच में रहे और उनके सुझाव एवं शिकायतों पर अपनी टिप्पणियां दीं। इस कार्यक्रम में अखबारों की चुनाव में भूमिका का मुद्दा भी छाया रहा। अधिकांश पत्रकार अखबारों की भूमिका से काफी निराश दिखे और यही भाव न्यायमूर्ति रे की भाव-भंगिमाओं से भी प्रकट हुए। हिंदी समाचार पत्र के अध्यक्ष उत्‍तम चंद शर्मा ने प्रेस परिषद अध्यक्ष को विनीत खंड में बने नए मीडिया सेंटर के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया था। इस अवसर पर सम्मेलन के महामंत्री राजीव अरोड़ा, रजा रिज़वी, श्रमजीवी पत्रकार नेता और जनमोर्चा के संपादक शीतला सिंह सहित पत्रकारिता पेशे से जुड़े अनेक लोग उपस्थित थे।

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