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लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट प्रावधान के बावजूद सतर्कता विभाग और उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान को सूचना के अधिकार के बाहर कर दिया है जो सीधे-सीधे सूचना के अधिकार के प्रावधानों से छेड़-छाड़ और खिलवाड़ है, साथ ही यह इस अधिनियम की मूल भावना पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के भी विरोध में है।जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में सतर्कता विभाग और उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान को जन सूचना अधिनियम 2005 के प्रावधानों के बाहर कर दिया गया है। इसे जन सूचना अधिनियम 2005 की धारा 24 की उपधारा 4 के अधीन दी गयी शक्तियों के तहत बाहर किया गया है। तर्क यह दिया गया है कि चूँकि इन विभागों में अधिकारियों के विरुद्ध जांच और विवेचना चलती रहती है और इस प्रकार से सूचना दिए जाने से वे गलत प्रकार से प्रभावित हो सकते हैं। धारा 24 केंद्र और राज्य सरकारों को यह अधिकार प्रदान करती है कि सुरक्षा और अभिसूचना संगठनों को अनुसूची दो में रखकर उसे सूचना के अधिकार के प्रावधानों के बाहर रख सकती है किंतु इसमें यह साफ़ तौर पर लिखा हुआ है कि इसमें भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के मामले शामिल नहीं होंगे।नेशनल आरटीआई फोरम की संयोजक डॉ नूतन ठाकुर ने प्रदेश सरकार के इस आदेश की पूरी तरह निंदा की है और समझा है कि इसके फलस्वरूप इसकी पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के विरुद्ध स्थिति बन जाती है। फोरम ने सरकार और राज्यपाल से इस आदेश पर पुनर्विचार करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। इस हेतु उत्तर प्रदेश सरकार और राज्यपाल को प्रतिवेदन भी प्रेषित किया गया है। फोरम ने कहा है कि ऐसा नहीं होने पर लोकतंत्रात्मक विधियों से इसका विरोध किया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर विधिक कार्यवाही भी की जाएगी क्योंकि फोरम का मानना है कि यह कार्य प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था में सीधे तौर पर गलत सन्देश प्रेषित करेगा।