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चित्तौड़। चित्तौड़ की रहने वाली और कक्षा सात में पढ़ रही 11 वर्षीय दिव्या जैन पॉलीथीन की थैलियों के खिलाफ अपने देशवासियों, पर्यावरण प्रेमियो, गौ भक्तों को जागरूक कर रही हैं। उन्होंने पॉलीथीन के भयानक नुकसान का हवाला देते हुए देशवासियों से अनुरोध किया है कि वे इसका उपयोग बंद कर समाज और पशुओं पर उपकार करें। दिव्या जैन का कहना है कि विज्ञान ने मानव को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के असीम अवसर तो दिए हैं, लेकिन मनुष्य ने बिना कुछ सोचे समझे ही विज्ञान के माध्यम से रोजमर्रा के कुछ ऐसे खतरनाक साधन विकसित कर दिए हैं जो मनुष्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक सिद्ध हो रहे हैं। इनमें से एक है-पॉलीथीन है जो कागज, कपड़े या गत्ते की तरह गलता नहीं है। आज पॉलीथीन ने मानव जीवन में अच्छी खासी पैठ बना ली है, या यूं कहें कि इसने हमें अपना गुलाम बना लिया है। व्यवसायिक मार्केट हो या सब्जीमण्डी सभी के हाथों में पॉलीथीन की थैलियां नजर आ जाती हैं। लोग कपड़े या जूट का थैला लेकर चलने में शर्म महसूस करते हैं और घर से बाजार हाथ हिलाते जाना ज्यादा पसन्द करते हैं।
दिव्या जैन ने एक अभियान चलाकर देशवासियों ये पॉलीथीन की थैलियां हमारे लिए बहुत नुकसानदायक हैं। ये जमीन में जाकर उसके उपजाऊपन को नष्ट करती हैं। नदी नालों में जाकर उसके बहाव को रोककर गन्दगी और बीमारी का कारण बनती हैं और कई बार महामारी का कारण भी बनती हैं। नदी, तालाब, नालों और धरती पर इसकी परत बिछ जाने से जमीन में जल नही जा पाता। ये पेड़ पौधो को पनपने नही देती है। जमीन को खोदकर देखते हैं तो पॉलीथीन की थैलियां ही थैलियां मिलती हैं इसे जलाने पर भी विषाक्त गैसे पैदा होती हैं जो पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य के लिए भी खतरनाक है। पॉलीस्टरीन नामक प्लास्टिक को जलाने से क्लोरोफलोरो कार्बन बाहर आता है, जो जीवन रक्षक ओजोन कवच को नष्ट कर देते हैं।
दिव्या जैन ने कुछ घटनाओं का जिक्र किया। सन् 1998 में मुंबई में सीवर नेटवर्क चोक हो गया और एक समय उसने कृतिम बाढ़ का रूप धारण कर लिया था। मुझे कई मृत गायों और अन्य मवेशियों के विषय में पता चला कि उनकी मृत्यु पॉलीथीन की थैलियां खाने से हुई है। पशु चिकित्सकों के सामने यह समस्या रहती है कि कोई भी ऐसी दवाई नही है जो पशुओं के पेट में जमा पॉलीथीन को पचा सके या बाहर निकाल सके। पॉलीथीन पशुओं के लिए चलता फिरता कत्लखाना है और लोग बेखबर होकर मवेशियों को मौत के मुंह में भेज रहे हैं। इस विषय में सरकार कानून बना दे तब भी जागरूकता जरूरी है। दिव्या जैन प्लास्टिक के बने खिलौनो की चर्चा भी करती है। 'सेंटर फॉर साइंस एण्ड एनवायरमेंट' का ताजा अध्ययन बताता है कि भारतीय बाजार में बिक रहे अधिकांश खिलौनो में थैलेट नामक रसायन पाया जाता है। सीएसई ने प्रमुख ब्राडस के 24 खिलौनों के नमूनों की जॉच कराई जिनमें 15 सॉफ्ट टॉयज और 9 हार्ड टॉयज थे। जांच में सामने आया कि सभी में एक या एक से अधिक तरह के थैलेट्स नामक रसायन थे जो कि किसी न किसी तरह से छोटे-छोटे बच्चों में अनेक तरह की बीमारियों का कारण बन रहे हैं। इनसे अस्थमा, गुर्दा, एलर्जी, प्रजनन सम्बन्धी बीमारियां प्रमुख रूप से होती हैं।