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इस्लामिया कॉलेज में रे और भान को श्रद्धांजलि

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लखनऊ। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट, सिद्धार्थ शंकर रे को स्मरण करने और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस्लामिया कॉलेज में एक शोक सभा आयोजित की गयी जिसकी अध्यक्षता चौधरी शर्फुद्दीन वरिष्ठ उपाध्यक्ष अन्जुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन और मुमताज़ पीजी कॉलेज ने की। सभा में सिद्धार्थ शंकर रे को इस रूप में स्मरण किया गया कि वह एक पूर्ण रूप से धर्मनिर्पेक्ष और न्याय पसन्द व्यक्ति थे और वह न केवल अपने वकालत के पेशे में एक उच्च स्थान रखते थे बल्कि उन्होंने स्वतन्त्र भारत में बिना किसी भेद भाव के राष्ट्र की राजनीति का नेतृत्व किया और बाबरी मस्जिद के मुक़दमों को अपने अनुभव से मज़बूती पहुंचाई।
कॉलेज की कार्यकारिणी समिति के प्रबन्धक और हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शफीक़ मिर्ज़ा एडवोकेट ने अपने शोक संदेश में सिद्धार्थ शंकर रे को श्रंद्वाजलि अर्पित करते हुए कहा कि इस्लामिया कॉलेज में सदा ऐसे लोगों को याद रखने के लिए सभाओं का आयोजन किया जाता रहा है जो राष्ट्र के लिए मूल्यवान रहे हों, और सिद्धार्थ शंकर रे का व्यक्तित्व इसी प्रकार का था जिनके योगदान को राष्ट्र, विश्व और भारतीय मुसलमान कभी भूल नहीं सकते। कॉलेज के सहायक प्रबन्धक और अधिवक्ता ज़फ़रयाब जीलानी एडवोकेट ने सभा का संचालन करते हुए सिद्वार्थ शंकर रे की जीवनी और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और बाबरी मस्जिद से सम्बन्धित मुक़दमों, चाहे वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में हों या उच्चतम न्यायालय में हों, में उनके द्वारा की गयी बहस के सम्बन्ध में लोगों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि सिद्वार्थ शंकर रे बाबरी मस्जिद के मुक़दमों के लिए उनसे सम्पर्क किये जाने पर तुरन्त अपनी देते थे जिसके लिए वह कोई फ़ीस भी नहीं लेते थे।
बाबरी मस्जिद मुक़दमे के एक दूसरे अधिवक्ता मुशताक़ अहमद सिद्दीक़ी एडवोकेट ने कहा कि सिद्वार्थ शंकर रे न केवल पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, राज्यपाल पंजाब और अमेरिका में भारतीय उच्चायुक्त आदि पदों पर आसीन रहे बल्कि भारत के एक सम्मानित विधि विशेषज्ञ भी थे! अतिरिक्त महाधिवक्ता उप्र सैय्यद हुसैन एडवोकेट ने कहा कि सिद्धार्थ शंकर रे बाबरी मस्जिद के मुक़दमे की तैयारी और बहस को अपना कर्तव्य समझते थे। वह इस बात का प्रयास करते थे कि उनके कारण से बाबरी मुक़दमे पर कम से कम खर्चे आए और मुक़दमे की सुनवाई कभी उनके कारण बढ़ने न पाये। आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी एडवोकेट ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि पेश करते हुए कहा कि शायद उनसे अधिक धर्मनिर्पेक्ष व्यक्ति मुश्किल से मिल सके। इसके अतिरिक्त मो ज़फ़र एडवोकेट, मो अफज़ल एडवोकेट आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
शोक सभा में प्रोफे़सर सूरज भान का भी स्मरण किया गया जिनका देहान्त भी जल्दी ही हुआ है। वह कई बार बाबरी मस्जिद मुक़दमे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ के सामने पुरातत्ववेत्ता के रूप में प्रस्तुत हुए और बाबरी मस्जिद के पक्ष में अपना बहुत मूल्यवान बयान दर्ज करवाया। प्रोफेसर सूरज भान ने अपने बयान से यह साबित किया था कि बाबरी मस्जिद किसी मन्दिर को तोड़ कर नहीं बनायी गई थी। अयोध्या की खुदाई के दौरान भी वह कई बार खुदाई स्थल पर गये। प्रोफेसर सूरज भान हरियाणा के रोहतक जिले से सम्बन्ध रखते थे। वे पुरातत्वविज्ञान के प्रोफेसर थे। उनकी गिनती एक बडे़ पुरातत्ववेत्ता के रूप में की जाती है। वह कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में पुरातत्वविज्ञान के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सभा में अल्लाह ताला से दुआ की गई कि सिद्धार्थ शंकर रे और प्रोफेसर सूरज भान के परिवारजनों को धैर्य दे और मुसलमानों को उन जैसे दूसरे धर्मनिर्पेक्ष एवं निष्ठावान अधिवक्ता एवं विशेषज्ञ प्रदान करे।
सभा में नगर के जिन गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया उनमें फज़लुल बारी, मुमताज़ पीजी कॉलेज प्राचार्य डॉ एमए फारूक़ी, हमीद इक़बाल सिद्दीक़ी एडवोकेट, इस्लामिया डिग्री कॉलेज प्राचार्य डा एमए सिद्दीक़ी, अदील अहमद सिद्दीक़ी, मसूद आलम जीलानी, मो हसीन खॉ, इन्तिख़ाब जीलानी, सैय्यद कफील अहमद, दिलशाद हुसैन एडवोकेट, राशिद मीनाई के अतिरिक्त इस्लामिया कॉलेज और मुमताज़ कॉलेज के अध्यापक शामिल थे।

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