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लखनऊ। उर्दू मीडिया गिल्ड के तत्वावधान और अवधनामा के सहयोग से सूचना निदेशालय के प्रेक्षागृह में हुसैन डे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर मेंहदी हसन ने की। गन्ना संस्थान के अध्यक्ष इंतिजार आब्दी बॉबी मुख्य अतिथि थे और संचालन शफीक हुसैन शफ्क ने किया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में साकेत कालेज फैजाबाद के अंग्रेजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष जगन्नाथ त्रिपाठी ने कहा कि कर्बला में इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानी ने इस्लाम की इफाजत की। इस्लाम की जो हालत यजीद ने कर दी थी उसको जिन्दा करने में कर्बला में हुई इमाम हुसैन और उनके परिवार के एक-एक बच्चे एवं साथियों की शहादत अहम है। इमाम हुसैन जानते थे कि अगर वह यजीद की बैअत कर लेंगे तो मुसतकबिल में इस्लाम का नाम लेने वाला कोई नजर नहीं आयेगा। इमाम हुसैन अल्ला को अपना हकीम समझते थे और उन्हीं के उसूलों पर चलते थे।
इंतिजार आब्दी बॉबी ने कहा कि इमाम हुसैन ने कुर्बानी देकर कयामत तक के लिए मानवाधिकार की रक्षा कर दी क्योंकि यजीद के दौर में मानवाधिकार का हनन हो रहा था जुल्म किये जा रहे थे, ऐसे में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत ने मानवता को बचा लिया। आब्दी ने कहा कि हिन्दुस्तान में मानवता आदिकाल से ही है, इसलिए इमाम हुसैन ने हिन्दुस्तान आने की इच्छा व्यक्त की थी। मौलाना कयाम मेंहदी ने कहा कि इस्लाम का प्रथम संदेश जियो और जीने दो है। रसूल की शीरत और शिक्षा में एक इंसान का कत्ल पूरी इंसानियत का कत्ल करने के बराबर है। इमाम हुसैन ने यजीद जैसे जालिम और सबसे बड़े दहशतगर्द की बया से इंकार करके भूख और प्यास में कर्बला की सरजमीन पर बेमिसाल कुर्बानी दी है।
हनुमान प्रसाद मातवी ने शहीदाने कर्बला पर अपने ख्यालात का इजहार नज्म में किया। प्रोफेसर मेंहदी हसन ने कहा कि इस्लाम की उसूल यह है कि जंग से पहले इकदामे सुल्हा है और इंसानियत हक और सच्चाई की नजरें तलाश करती है। इस्लाम का उसूल यह है कि पहले से ही इकदामे सुल्हे की जाती थी और इमाम हुसैन ने सुल्हे और जंग दोनों के फर्ज अदा किये। अगर इमाम हुसैन ने यजीद की बयत कर ली होती तो इस्लाम आज शान्ति का नहीं बल्कि दहशतगर्दी का धर्म जाना जाता।