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यहां महिलाएं नहीं करा रही हैं नामांकन!

प्रवीन कुमार भट्ट

देहरादून। सरकार ने पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्हें पचास फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। पंचायतों में महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण देने की यह व्यवस्था उत्तराखंड राज्य में भी लागू है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बिना राजनीतिक प्रशिक्षण और वर्गीय चेतना के महिलाएं संख्या के लिहाज से पंचायतों की आधी सीटों को संभाल सकती हैं? देहरादून जिले की पंचायतों में दो सालों से खाली पड़े वार्ड सदस्यों के पदों को देखकर आपको भी यही लगेगा। जिले के चकराता, कालसी, सहसपुर, रायपुर और डोईवाला विकासखंडों में 44 महिला वार्ड सदस्यों के पद दो साल से खाली पड़े हैं लेकिन इन पर किसी महिला ने अपनी दावेदारी नहीं की है। कहने को तो वार्ड सदस्य का पद छोटा हो सकता है लेकिन सही मायने में पंचायतों की सबसे महत्वपूर्ण इकाई वार्ड ही होता है जहां से लोकतंत्र की नींव पड़ती है।

उत्तराखंड राज्य में दो साल के भीतर तीन बार उपचुनाव हुए हैं और तीनों ही बार जनपद के इन खाली पड़े वार्ड सदस्यों के पदों के लिए भी अधिसूचना जारी की गई, बावजूद इसके, इन पदों पर नामांकन करने कोई महिला नहीं आई। वर्ष 2008 में पहली बार पचास फीसदी महिला आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव हुए थे। यह पद उसके बाद से खाली चले आ रहे हैं। बीस दिसम्बर 2010 को जनपद के ग्राम पंचायत सेवला कलां और चंदेऊ में प्रधान पद के लिए उपचुनाव कराये गये थे। इस उपचुनाव में भी इन 44 वार्ड सदस्यों के लिए किसी महिला ने नामांकन नहीं कराया।

देहरादून जनपद में खाली पड़े 44 महिला वार्ड सदस्यों के सभी पद आरक्षित श्रेणी के हैं। असल में नामांकन न कराने के पीछे एक वजह तो महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता का अभाव है और दूसरे, वार्ड सदस्यों को आर्थिक अधिकार नहीं हैं। देहरादून के डीपीआरओ एमएम खान ने बताया कि खाली पड़े वार्ड सदस्यों के पदों पर हर छह माह में अधिसूचना जारी की जाती है लेकिन कोई नामांकन नहीं होता। उन्होंने बताया कि उपचुनाव के साथ भी अधिसूचना जारी की गयी थी लेकिन किसी ने नामांकन नहीं कराया। इन वार्डों की जिम्मेदारी प्रधान की होती है और वे अपने हिसाब से यहां विकास कार्य कराते हैं।

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